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विपक्ष ने देश को किया शर्मसार

विपक्ष ने देश को किया शर्मसार ****************************** आज कुछ राजनैतिक दलों ने, जिसमे कुछ का दिल पकिस्तान के काफी नजदीक हैं, ने मीटिंग कर पाकिस्तान को एक नया हथियार दे दिया है . राहुल की अगुआई में पढ़े गए एक वक्तब्य में पुलवामा के शहीदों के राजनीतिकरण के लिए सरकार की निंदा के गयी . यानी ४५ जवानों की शहादत के बाद सरकार को जैश के ठिकाने ध्वस्त नहीं करने चाहिए थे क्योंकि ऐसा न हो कि मोदी को कोई राजनैतिक फायदा हो जाये और उन्हें नुकसान. राहुल की विद्वता पर तो किसी को कोई स ंदेह नहीं है, सभी जानते हैं किन्तु चन्द्र बाबू नायडू , ममता आदि को क्या कहा जाय जो आज राहुल के पिछलग्गू हो गए ? आज राहुल पाकिस्तान और हिन्दुस्तान दोनों जगह हेड लाइंस में हैं . पकिस्तान की सेना का खोया विश्वाश लौटने लगा है . हिन्दुस्तान के विपक्ष के समर्थन से उनके चेहरे पर मुस्कान आ गयी है. क्या देश को लोग वेबकूफ है जो ये नहीं समझ पाएंगे कि मोदी विरोध और राष्ट्र विरोध में क्या अंतर है ? इसके पहले पकिस्तान द्वारा जितने भी आक्रमण / अतिक्रमण हुए , विपक्ष ने हमेशा सरकार का साथ दिया क्योकि यदि सरकार का मनोबल कमज

कांग्रेस का महाभियोग ......या महाभूल ....

कांग्रेस और उनके सात सहयोगी दलों के राज्यसभा सदस्यों ने सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधीश श्री दीपक मिश्र के विरुद्ध महा अभियोग प्रस्ताव जो प्रस्ताव लाया था उसे उप राट्रपति ने अस्वीकार कर एक बड़े नाटक पटाक्षेप कर दिया . सुगबुगाहट तो बहुत दिनों से थी लेकिन इसे तब लाया गया जब दीपक मिश्र ने जज लोया की मौत के पुन: जाँच से इंकार कर दिया . आखिर क्या मनसा है कांग्रेस की . चीफ जस्टिस 2 अक्टूबर को रिटायर होने वाले हैं और कांग्रेस के सहयोगी दलों के पास इतनी संख्या बल नहीं कि महाभियोग पास करा सकें तो फिर ये महाभियोग का नाटक क्यों? क्या इसका एकमात्र मकसद न्याय पालिका को धमकाना है कि अगर कांग्रेस की मांग नहीं मानी तो इज्जत बेइज्जत करेंगे और उन पर आरएसएस और बीजेपी का ठप्पा लगा देंगे ताकि भविष्य में उन्हें कोइ पद और प्रतिष्ठा न मिल सके . इस तरह के हथकंडे भारत जैसे विशाल देश में बहुत काम करते है . जिलों और तहसील स्तर पर यही हो रहा है . अधिकांश अधिकारी हार मान लेते है क्योकि कोई लफड़े में पड़ना नहीं चाहता . मै स्वयं जिलों में पोस्टिंग के दौरान ऐसा महसूस करता रहा हूँ. राम मंदिरमुद्दे की सुनवाई के दौ

पीओके किसके बाप का ?

फारुख अब्दुल्ला ने कल एक जनसभा को संबोधित करते हुए भारत के 125 करोड  लोगों की भावनाओं पर कुठाराघात किया और  कहा कि क्या पीओके क्या आपकी (हिन्दुस्तान) बपौती है ? क्या पीओके उनके (हिन्दुस्तानियों) बाप का है ? जी हाँ हमारे....हम सबके बाप का है और रहेगा. असली मुद्दा है कि जो कश्मीर  पाकिस्तान के कब्जे में है वह कब वापस आएगा ? फारूक का ये बयान पूरे हिन्दुस्तान के लिए एक गाली है इसलिए बिना राजनीति किये सारे दलों को चाहिए कि न केवेल इसकी निंदा करें बल्कि उनके खिलाफ क्या कार्यवाही की जाय उस पर भी एकमत होना चाहिए. कुछ लोग बहुत भ्रम में जीते है उन्हें संदेह रहता है कि वे खुद  किसकी बपौती है ? हिन्दुस्तान की या पकिस्तान की ? क्या पीओके  उनकी बपौती है ? या पाकिस्तान उनका बाप है ? इतिहास गवाह है फारूक के बाप के नेहरू से बड़े अच्छे सम्बब्ध थे (कारण कुछ भी हो). उनके बाप शेख अब्दुल्ला ने भारत के साथ विश्वाश घात किया और  देशद्रोह किया. मजबूरी में नेहरू को उन्हें देश द्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर जेल में डालना पड़ा. कम से कम हम हिन्दुस्तानियों के बाप देशद्रोही तो नहीं थे. आपके बाप की तुलना हमारे बा

पुंछ के शहीदो को नमन

सरहद ने फिर   जख्म खाये हैं , देश के पाँच वीर पुंछ से शहीद होकर आए हैं , “ पाकिस्तान और आतंकवादियों की कायराना हरकत जैसे ” कई बयान एक साथ आए है , राजनेताओं से , भारत मे यह एक चलन है , पिछले काफी समय से , जिसे हर विदेशी और आतंकवादी आक्रमण के बाद , राज नेता करते आए है । इतिहास गवाह है , आक्रमणकारी कभी कायर नही कहलाते ।   कायर तो वो कहलाते हैं जो आक्रमण का मुंह तोड़ जबाब नहीं दे पाते । अगर ये आक्रमण कायरता है , तो पराक्रम   क्या है ? पाकिस्तान   का बचाव करना , खामोश रहना , या समर्पण करना , अगर यही सच है , तो ये पराक्रम की उल्टी पराकाष्ठा है , और  बेहद गैर जिम्मेदाराना है , सच तो ये है कि ऐसे हमलों को कायराना कहना ही कायराना है। क्या हिंदुस्तान इतना कमजोर है ? असहाय है ? लाचार है ? पर दुनियाँ को संदेश तो यही गया है कि यह देश बहुत बदहाल हो गया है ।    पूरा विश्व जनता है कि पाक है नापाक आक्रमणकारी , और भारत है उतना ही कुख्यात वार्ताकारी । आखिर वार्ता क्यों हो और किसलिए ? अगर हो ... तो सिर्फ इसलिए कि बस .... बहुत हो गया

हम हिन्दुस्तानी HAM HINDUSTANI: रिश्ते और रास्ते

हम हिन्दुस्तानी HAM HINDUSTANI: रिश्ते और रास्ते : रिश्ते प्यार के और रस्ते पहाड़ के, आसान तो बिल्कुल नही होते, कभी आंधी, कभी तूफान, कभी धूप, कभी  छांव  , तो कभी...

कुत्ते की मौत पर वाक युद्ध

किसी इंसान के मौत पर युद्ध हो सकता है और कुत्ते की मौत पर भी । लेकिन अगर कुत्ते की मौत काल्पनिक हो तो भी युद्ध हो सकता है , ये आप पहले बार देख रहे होंगे । दरअसल नरेंद्र मोदी ने लंदन की एक पत्रिका को दिये इंटरव्यू मे ये कहा की अगर आप गाड़ी मे पीछे बैठे हों और आपकी गाड़ी से कोई कुत्ते का पिल्ला कुचल जाए तो भी दुख होता है। बस फिर क्या था राजनैतिक गलियारों मे और लगभग सभी टीवी चैनलो पर वाक युद्ध शुरू हो गया। तरह तरह के भावार्थ निहातार्थ निकले जाने लगे ।   मोदी का इशारा शायद यह है की गैर इरादतन , अनजाने मे बिना उनकी किसी प्रत्यक्ष   गलती के गुजरात दंगों मे मारे गए लोगो की मौत का उन्हे दुख है। कहा तो ये भी जाता है की चीटी के मरने का भी दुख होता है। अच्छा होता की इस तरह के उदाहरण से वे बचते। तब शायद उनके विरोधी इंटरव्यू की किसी और बात का बतंगड़ बना देते जैसा की उनके हिन्दू राष्ट्रवाद के बयान को लेकर मचाया जा रहा है। मुझे लगता है की उनके फालोवेर्स मे विरोधी दल के भी काफी नेता है जो उनकी हर बात और हर गतिविधि   को बड़े ध्यान से देखते है और अपने दल के अनुकूल तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते है
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                          तार हुआ बेकार   “तार आया है “   सुन कर एक बारगी दिल की धड़कने थमने लगती थी । पता नहीं क्या है अच्छा या बुरा । ज़्यादातर बुरे की आशंका से मन बेचैन हो जाता था। क्योकि समान्यतया ये ऐसी खबरों के लिए स्तेमाल होता था जिनका जल्द से जल्द दिया जाना आवश्यक होता था और ऐसी खबरें अच्छी कम ही होती हैं ।   साधारणतया इसका उपयोग जन्म , म्रत्यु , शोक और बधाई संदेशो हेतु होता था।     व्यापारिक गतविधियों मे भी इनका उपयोग होता था । इनसे दी गई सूचना को कानूनी मान्यता थी ।   इनके रेकॉर्ड को इसलिए संभाल कर रखा जाता था । बैंकों मे मुद्रा प्रेषण हेतु तार भेजे जाते थे । इसमे कोई धांधली न कर सके इसके लिए बड़ी जटिल कोड प्रक्रिया (चेक सिग्नल) अपनाई जाती थी। तार का मतलब ही था कम शब्द , कम समय (तेज गति ) मे संदेश प्रेषण और डेलीवेरी सुनिश्चित संदेह से परे । इसलिए अत्यधिक महत्वपूर्ण कार्यों के लिए ही इसका स्तेमाल होता था । कहा तो ये भी जाता है की बहुत से सरकारी कर्मचारी अपनी छुट्टी स्वीकृत कराने हेतु भी झूठे तार का सहारा लेते थे ।   आगामी 15 जुलाई 2013 से भारत संचार निगम तारों का प्